हम जानते हैं, कि आप में से कुछ लोग Google पर Nastik Vichar सर्च करते हैं। इसलिए आज हम आपको बताने वाले हैं कि नास्तिकों के नास्तिक विचार आखिर क्या कहते हैं? इसे पढ़िये और खुद सोचिए कि यह कितने प्रतिशत सच हैं, या सच के करीब हैं! अगर आपने हमारा यह लेख Nastik Kise Kahte Hain? नहीं पढ़ा तो सलाह के तौर पर हम बताना चाहेंगे, कि पहले उसे जरूर पढ़े। उसके बाद ही इसे पढ़े, समझें और अन्य लोगों तक पहुंचाएं!
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विश्वप्रसिद्ध नास्तिकों के Nastik Vichar क्या कहते हैं?
यहां शुरुआत करते हैं ‘सुकरात‘ (466-366 ई॰पू॰) में हुए थे। हर पढ़ा-लिखा व्यक्ति इन्हें जानता होगा, उन्होने उस वक़्त कहा था कि-
“ईश्वर केवल शोषण का नाम है!”
मार्टिन लूथर (1483-1546) इन्होने कहा था कि-
“व्रत, तीर्थयात्रा, जप, दान आदि सब निरर्थक बातें है!”
कार्ल मार्क्स (1818-1883) का कहना था कि-
“ईश्वर का जन्म एक गहरी साजिश से हुआ है!”
और
“धर्म एक अफीम है!”
उनकी नजर में धर्म-विज्ञान विरोधी, प्रगति विरोधी, प्रतिगामी, अनुपयोगी और अनर्थकारी है। इसका त्याग जनहित में जरूरी है।
भारत के पूर्व नास्तिकों के Nastik Vichar क्या कहते हैं?
आचार्य चार्वाक का कहना था कि-
“ईश्वर एक रुग्ण विचार प्रणाली है, इससे मानवता का कोई कल्याण होने वाला नहीं है।”
अष्टावक्र का कहना था कि-
“जो अज्ञान है उसे जान लेने से ज्ञान स्वतः ही प्रकट हो जाता है”।
Bhagat Singh Nastik Vichar in Hindi
“मनुष्य ने जब अपनी कमियों और कमजोरियों पर विचार करते हुए अपनी सीमाओं का अहसास किया तो मनुष्य को तमाम कठिनाईयों का साहसपूर्ण सामना करने और तमाम खतरों के साथ वीरतापूर्ण जुझने की प्रेरणा देने वाली तथा सुख दिनों में उच्छखल न हो जाये इसके लिए रोकने और नियंत्रित करने के लिए ईश्वर की कल्पना की गयी है”।
Periyar Nastik Vichar in Hindi
इसे भी पढ़िये और गांठ बांध लीजिये! कि-
जातिवाद, धार्मिक कट्टरता, महिलाओं का सम्मान, पितृसत्ता सबकी जड़ें धर्म के खाद से मजबूत होती है।